Saturday, August 15, 2020

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*तम्हीदे ईमान क़िस्त 38*


तुम्हारा रब अज्ज़ा जल्ल फ़रमाता है👇


قل هاتو برهانكم إن كنتم صاديقين،


तर्जमाः---- लाओ अपनी बुरहान (दलीत) अगर सच्चे हो।" 


📗 पारा 20, रुकू 1, सूरह नहल)


इससे ज़्यादा की हमें हाजत (ज़रूरत) न थी मगर बा फ़ज़लिही तआला हम उनकी (यानी वहाबी देवबंदी अहले हदीस तब्लीग़ी नदवी क़ादयानी वगैरह की) कज़्ज़ाबी का

(झूटे होने का) वह रौशन सुबूत दें कि हर मुसलमान पर उनका मुफ़्तरी (झूटा) होना आफताब से ज़्यादा ज़ाहिर हो जाए।


सुबूत भी बिहम्दिल्लाही तआला तहरीरी वह भी छपा हुआ वह भी न आज का बल्कि सालहा साल का, जिन-जिन की तकफ़ीर (कुफ्र लगाना) का इत्तेहाम (तोहमत) उलमा ए अहले सुन्नत पर रखा उनमें सब से ज़्यादा गुन्जाइश अगर उन साहिबों को मिलती


तो इस्माईल देहलवी में कि बेशक उलमाए-अहले सुन्नत ने उसके कलाम में ब-कसरत कलिमाते कुफ्रिया साबित किए और शाएअ् फ़रमाए। बायं हमा (इन तमाम के बावजूद)

अव्वलन---सुबहानस्सुब्बूह अन ऐबी कज्ज़ाबी मकबूह, 1307 हिजरी, देखिए कि बारे अव्वल 1309, हिजरी में लखनऊ मतबअ् अनवारे मुहम्मदी (कुतुब खाना) में छपा जिसमें ब दलाइले काहिरा देहलवी मज़कूर और


उसके अतबा पर पचहत्तर (75) वजह से लजूमे कुफ्र साबित करके सफ़ह 90 पर हुक्मे आख़िर यही लिखा कि उलमाए मोहतातीन (एहतियात करने वाले आलिम) इन्हें काफिर न कहें यही सवाब है। 

यानी यही जवाब है

और इसी पर फतवा हुआ और इसी पर फतवा है और यही हमारा मज़हब और इसी पर ऐतेमाद और इसी में सलामत और इसी में इस्तेकामत (यानी काएम रहना)


सानियन--- अल कौकबतहुश्शहाबियह फ़ी कुफ़्रियाती इब्नुल वहाबियह,

(यह किताब का नाम है जो 1312, हिजरी में छपी)


देखिये जो ख़ास इसमाईल देहलवी और उसके मुत्तबेईन (पैरवी करने वाले) ही के रद्द में तसनीफ हुआ (लिखा गया) और बारे अव्वल (यानी पहली बार) शाबान 1316 हिजरी में अज़ीमाबाद में मतबअ् (कुतुब खाना) तोहफा ए हनफियह में छपा, जिसमें नसूसे जलीला कुरआन मजीद व अहादीसे सहीहा व तसरीहाते आइम्मा से ब-हवाला सफ़हात कुतुबे मोअतमिदा (यानी जिस भरोसा किया जाए) उस पर सत्तर (70) वजह बल्कि ज़ाइद से लज़ूम कुफ्र साबित किया,


और बिल आख़िर यही लिखा (सफ़ह 62) हमारे नज़दीक मकामे एहतियात में इकरार (यानी काफिर कहने से) कफ्फे लिसान (यानी जुबान रोकना) माखूज़ व मुख्तार व मुनासिब। वल्लाह सुबहानहु व तआला आलम।


सालिसन---- सल्लुस्सुयूफिल हिन्दीया अला कुफ़्रियाते बाबुल नजदियह, 1312, हिजरी,

देखिए कि सफ़र 1316 हिजरी को अज़ीमाबाद में छपा। इसमें भी इस्माईल देहलवी और उसके मुत्तबेईन पर बवुजूहे काहेरह (मजबूत दलाइल से) लज़ूम (कुफ्र के लाज़िम होने का सबूत) देकर सफ़ह 21----22 पर लिखा यह हुक्म फिक़ही मुतअल्लिक ब कलिमाते सफ़ही (बेहूदा बातें) था


मगर अल्लाह तआला की बेशुमार रहमतें बेहद बरकतें हमारे उलमा ए किराम पर कि यह कुछ देखते उस ताएफा (गिरोह) के पीर से बात बात पर सच्चे मुसलमानों की निसबत हुक्मे कुफ्र व शिर्क सुनते हैं। बायं हमा (इसके बावजूद)



कि लज़ूम (लाज़िम होना) व इलतेज़ाम (लाज़िम कर लेना) में फ़र्क़ है। अक़वाल (कौल यानी जो कहा की जमा) का कलिमाए कुफ्र होना और बात और काइल (कहने वाला) को काफिर मान लेना और बात


। हम एहतियात बरतेंगे, सुकूत करेंगे, जब तक ज़ईफ़ सा ज़ईफ़ एहतिमाल मिलेगा, हुक्मे कुफ्र जारी करते डरेंगे। मुख़्तसरन।


Next........


*🌹 तालिबे दुआ 🤲👇*


हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुल्फ़ुक़ार ख़ान नईमी साहब क़िब्ला व हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद क़ासिम रज़ा नईमी साहब क़िब्ला और ग़ुलामे ताजुश्शरिअह अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यूपी इंडिया,


*📗 4.अल नूरी मैसेज 📘*


🌹📓📔📕📙📗📘📚🌹

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